विषाणु क्या है
विषाणु का चित्र
विषाणु की संरचना
विषाणु का आकर
विषाणु के महत्वपूर्ण तथ्य
- एक विषाणु एक सूक्ष्म संक्रामक एजेंट है, जो अन्य जीवों की जीवित कोशिकाओं में परजीवी के रूप में पाया जाता है।
- विषाणु अन्य जीवों की जीवित कोशिकाओं के अंदर तेजी से प्रतिकृति बनाता है।
- विषाणु एक लैटिन शब्द है जिसका अर्थ है 'जहर' और अन्य 'हानिकारक' तरल पदार्थ।
- विषाणु जानवरों और पौधों से लेकर सूक्ष्मजीवों तक, बैक्टीरिया और आर्किया सहित किसी भी प्रकार के जीवन रूपों को संक्रमित कर सकते हैं।
- विषाणुओं के अध्ययन को विषाणु विज्ञान कहते हैं।
- विषाणु की खोज सबसे पहले 1892 में दिमित्री इवानोव्स्की ने की थी।
- विषाणु में सजीव होने के साथ-साथ निर्जीव गुण भी होते हैं।
- जीवित गुणों में से एक है - विषाणु में या तो डीएनए या आरएनए होता है (दोनों कभी नहीं)।
- निर्जीव गुणों में से एक है - विषाणु में कोई प्रोटोप्लाज्म नहीं होता है।
विषाणु के प्रकार
परजीवी प्रकृति के आधार पर, विषाणु को निम्न रूप में वर्गीकृत किया जाता है
- पशु वायरस
- प्लांट वायरस
- बैक्टीरियल वायरस
- आर्कियल वायरस
मानव में विषाणु से होने वाले रोग
मानव में विषाणु से होने वाले रोगों की सूची निम्नलिखित है-
- मानव इम्युनोडेफिशिएंसी वायरस (एचआईवी / एड्स)
- छोटी माता
- चेचक
- पोलियो
- डेंगू ज्वर
- हेपेटाइटिस
- हिपैटाइटीरा या पीलिया या जौंडिस
- हाइड्रोफोबिया या रेबीज़
- मनिनजाईटिस (Meningitis)
- ट्रेकोमा (Trachoma)
- छोटी माता (Chicken Pox)
- कण्ठमाला (खसरा और रूबेला)
- गलसुआ (Mumps)
- इन्फ्लुएंजा (या फ्लू)
- हरपीज (त्वचा रोग)
- दाद
- आंत्रशोथ (पेट फ्लू)
- निमोनिया
विषाणु से होने वाले रोग को याद करने का सबसे आसान ट्रिक्स
विषाणु से होने वाले रोग (Viral diseases):
1. एड्स (AIDS):
एड्स (AIDS) 'एक्वायर्ड इम्यूनो-डिफिसीएन्सी सिंड्रोम' (Acquired Immuno-Deficiency Syndrome) का संक्षिप्त रूप है | यह इस रोग के विषाणु का नाम है - HIV - Human Immuno Deficiency Virus)| रोग यौन सम्बन्धो के कारण, रक्तधान में अनियमितता से और नशीले पदार्थों के अत्यधिक सेवन करने से फैलता है | इस रोग से ग्रसित रोगी का रोग प्रतिरोधक क्षमता समाप्त हो जाती है | रोगी का शरीर जगह-जगह फूल जाता है, खून का संचार अव्यवस्थित हो जाता है और अंतत: रोगी की मृत्यु हो जाती है |
उपचार:
सुरामीन, साइक्लोस्पोरीन, रिबावाईरीन, अल्फ़ा-इन्टरफेरान आदि दवाओं का प्रयोग इस रोग के उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है | ए.जेड.टी. (Azidothymidine) दवाओं का भी प्रयोग किया जाता है जो एच. आई. वी. विषाणुओं की रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज क्रिया रोककर विषाणुओं को बहुगुणित होने से रोकती है |
2.चेचक (Small Pox):
यह एक अत्यंत संक्रामक रोग है जिसका संक्रमण एक अतिसूक्ष्म विषाणु के कारण होता है | इस रोग से ग्रसित रोगी को सर्वप्रथम सिर, पीठ, कमर और बाद में सारे शरीर में जोरों का दर्द होता है एवं बाद में लाल-लाल दाने निकल जाते हैं, जो बाद में फफोले का रूप धारण कर लेते हैं |
उपचार:
रोगी को तब तक अलग रखना चाहिए जब तक कि फोड़ों के सुरंड साफ़ न हो जाएं | घर या आस-पास के लोगों को चेचक का टीका ले लेना चाहिए |
3. इन्फ्ल्युएंजा (Influenza):
यह एक संक्रामक रोग है, जिसका संक्रमण 'इन्फ्लुएंजी' (Influenzae) नामक रोगाणु के कारण होता है | इसको 'फ्लू' (Flu) भी कहते हैं | इस रोग का आक्रमण होने पर सर और पूरे शरीर में जोरों का दर्द, सर्दी, खांसी तथा तेज ज्वर आदि लक्षण प्रकट होते हैं | यह कभी-कभी महामारी का रूप भी ले लेता है |
उपचार:
रोगी को 'टेरामाईसीन, टेट्रासाईक्लीन' आदि एंटीबायोटिक्स लेनी चाहिए | रोगी का पेट साफ़ रखना चाहिए | पोटेशियम परमैंगनेट के घोल से सुबह-शाम गरारा करना चाहिए |
4. पोलियो (Poliomyelities):
यह रोग निस्यन्दी विषाणु (Filterable virus) के कारण होता है | इस रोग का प्रभाव केन्द्रीय नाड़ी संस्थान पर होता है, तथा रीढ़ की हड्डी और आंत की कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं | यह प्राय: बच्चों को होता है | शरीर इससे बचने के लिए रोग-प्रतिकारक पदार्थ का निर्माण करने लगता है, जिससे विषाणु मर जाते हैं और रोगी पूर्णत: ठीक हो जाता है |
उपचार:
इस रोग से बचाव के लिए बच्चों को पोलियो निरोधी बैक्सीन दिया जाता है | 'साक टीके' (Salk vaccine) जो की 'साक' (Salk) ने ही खोजी थी इंजेक्शन के द्वारा दी जाती है | 'एल्बर्ट सेबिन' ने 1957 में मुख से लेने वाली 'पोलियो ड्रॉप' की खोज करके प्रतिरक्षण की और आसान बना दिया |
5. डेंगू ज्वर (Dengue fever or Break bone fever):
यह रोग विषाणु के कारण होता है | इस रोग को 'इडिस इजिप्टी, इडिस एल्बोपिक्टस' और 'क्युलेक्स फटीगन्सस' नामक मच्छर संचारित करते हैं | इस रोग में अचानक तेज ज्वर आ जाता है, चेहरा पर पित्तियाँ निकल आती हैं तथा सिर, आँखे, पेशियों और जोड़ों में बहुत जोरों का दर्द होता है | यह महामारी के रूप में अचानक फैलता है | इस रोग को 'हड्डी तोड़ बुखार' भी कहते हैं |
6. हिपैटाइटीरा या पीलिया या जौंडिस (Jaundice):
उपचार:
इस रोग से बचने के लिए ठंडक से बचना चाहिए | हल्का परन्तु पौष्टिक आहारग्रहण करना चाहिए | रोगी को तब तक आराम करना चाहिए, जब तक सीरम में 'विलीरूबीन' (Bilirubin) की मात्रा 1.5 मिलीग्राम प्रति 100 मिलीलीटर नहीं हो जाता है |
7.हाइड्रोफोबिया या रेबीज़ (Hydrophobia or Rabies):
यह एक संघातिक रोग है जिसका संक्रमण केन्द्रीय तंत्रिका तन्त्र में होता है | इसका संक्रमण पागल कुत्ते, भेड़िये, लोमड़ी आदि के काटने से होता है, क्योंकि यह रोग सर्वप्रथम इन्ही जन्तुओं में होता है | इनके काटने से रोग के विषाणु शरीर में प्रवेश कर जाते है और समुचित समय पर चिकित्सा न की जाने पर केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करते हैं | यह रोग दो रूपों में दिखने को मिलता है | एक में उत्तेजना होती है, जल से भय उत्पन्न होता है और रोगी की आवाज कुत्ते के भौंकने जैसी निकलती है | दूसरे में रोगी को पक्षाघात (Paralysis), तेज ज्वर और भयंकर सिरदर्द होता है तथा वमन (Vomitimg) करने की प्रवृति और बेचैनी महसूस होती है
उपचार:
रेबीजरोधी (Antirabies) टीका लगवाना चाहिए | इस टीके की खोज 'लूई पाश्चर' ने किया था | घाव को शुद्ध कार्वोलिक या नाइट्रिक एसिड से धो देना चाहिए |
8. मनिनजाईटिस (Meningitis):
इस रोग में मस्तिष्क प्रभावित होता है | इस रोग में रोगी को तेज बुखार आता है तथा बाद में बेहोशी भी होने लगती है | मस्तिष्क तथा मेरुरज्जु के उपर चढ़ी झिल्ली के नीचे रहने वाले द्रव सेरिब्रो स्पाईनल द्रव के संक्रमण होता है | इस रोग से बचने के लिए मनिनजाईटिस रोधी टीका लगवाना चाहिए |
9. ट्रेकोमा (Trachoma):
यह आँख की कार्निया का सांसर्गिक रोग है | इससे कॉर्निया में वृद्धि हो जाती है जिससे रोगी निद्राग्रस्त सा लगता है | इस रोग से बचने के लिए पेनीसीलीन, क्लोरोमाईसीटीन आदि का प्रयोग करना चाहिए |
10. छोटी माता (Chicken Pox):
यह रोग भी चेचक की तरह बहुत ही संक्रामक होता है | इसमें हल्का बुखार होता है तथा शरीर पर पित्तीकायें निकल जाती है जो बाद में जलस्फोटों में बदल जाती है | इस रोग से बचने के लिए चेचक के टीके लगवाना चाहिए तथा सफाई पर ध्यान देना चाहिए |
11. खसरा (Measles):
इस रोग का कारक 'मोर्बेली विषाणु' (Morbeli virus) है | इस रोग में सम्पूर्ण शरीर प्रभावित होता है | यह वायु वाहित रोग है | इस रोग के विषाणु नाक से स्राव द्वारा फैलते हैं | इस रोग के आरंभ में नाक व आँख से पानी बहता है, शरीर में दर्द रहता है तथा ज्वर आदि लक्षण प्रकट होते है | 3-4 दिन बाद शरीर पर लाल दाने हो जाते हैं | इसके उपचार के लिए रोगी को आराम करना चाहिए और हल्का भोजन तथा उबला पानी पीना चाहिए |
12. गलसुआ (Mumps):
इस रोग का कारक 'मम्पस वाइरस' (Mumps virus) है | इस रोग में लार ग्रन्थि प्रभावित होता है | इस रोग के विषाणु का प्रसार रोग की लार से होता है | प्रारंभ में झुरझुरी, सिरदर्द तथा कमजोरी महसूस होती है | एक-दो दिन बुखार रहने के बाद कर्ण के नीचे स्थित पैरोटिक ग्रन्थि (Parotid gland) में सूजन आ जाती है | इसके उपचार के लिए नमक के पानी की सिकाई तथा 'टेरामाईसीन' के इंजेक्शन लगवाने चाहिए |
पौधों में विषाणु से होने वाले रोग
- मूंगफली - स्टंट वायरस
- मक्का - मोज़ेक वायरस
- सलाद पत्ता - मोज़ेक वायरस
- फूलगोभी - मोज़ेक वायरस
- गन्ना - मोज़ेक वायरस
- खीरा - मोज़ेक वायरस
- तंबाकू - मोज़ेक वायरस
- टमाटर - मुड़ पत्ती रोग
- भिंडी - पीली शिरा मोज़ेक
पशुओं में विषाणु से होने वाले रोग
- गाय - हरपीज (हरपीज वायरस)
- भैंस - चेचक (पॉक्सवेर्डी ऑर्थोपॉक्स)
- कुत्ता - रेबीज (स्टीराइट वायरस)
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